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Gond Dharam Sthali: Kachargarh

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भारत में पर्यटन के लिए प्रसिद्ध कई गुफाओं जैसे महाराष्ट्र की अजंता-एलोरा और विशाखापट्टनम की बोरा गुफाओं की तुलना में, एक और महत्वपूर्ण गुफा के बारे में कम ही लोग जानते हैं—कचारगढ़ गुफा। यह गुफा खास तौर पर गोंड समुदाय के लिए आस्था का केंद्र है और साल में एक बार यहाँ पर आदिवासी गतिविधियाँ अपनी चरम पर होती हैं। ऐसी मान्यता है कि सैकड़ों साल पहले, गोंड समाज के पहले गुरु पाहंदी पारी कोपार लिंगो ने इस गुफा की खोज की थी। गोंड समाज की आस्थाओं के अनुसार, हर क्षेत्र—चाहे वो गाँव हो या शहर, जल-जंगल, पहाड़-पर्वत या कृषि औजार—इन सभी में उनके देवता निवास करते हैं। कहा जाता है कि गोंडवाना साम्राज्य का विस्तार वर्तमान के महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, और छत्तीसगढ़ तक फैला था। गोंडवाना साम्राज्य आज भी इन राज्यों में गोंड समाज की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक छवि के रूप में देखा जा सकता है। कचारगढ़ की गुफाओं में भी इस साम्राज्य के अतीत की झलक मिलती है। ये गुफाएं महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ की सीमा पर सालेकसा तहसील में स्थित हैं और हरे-भरे पहाड़ों और प्राकृतिक सुंदरता के बीच में बसे हैं। #Kachargarhmela #Kachargarh #gondi #Gondwana #gondwana_video मेला: तीन से सात फरवरी तक आयोजन कचारगढ़ गोंड समाज का उत्पत्ति स्थल माना जाता है और इसे एशिया की सबसे विशाल प्राकृतिक गुफाओं में से एक माना जाता है। महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ की सीमा पर सालेकसा तहसील में स्थित यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित माना जाता है। यहाँ हर साल पाँच दिनों के लिए गोंड समाज के लोग अपने देवी-देवताओं की सेवा और पूजा के लिए एकत्रित होते हैं। इस बार का मेला तीन से सात फरवरी तक आयोजित किया गया, जिसमें ‘महागोगोना कोयापूनेम महापूजा’ भी होती है, जिसका आयोजन कचारगढ़ ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। लाखों आदिवासियों की आस्था का केंद्र इस मेले में देश के लगभग 16 राज्यों से गोंड आदिवासी अपने पूर्वजों और गोंडी धर्म के संस्थापक पाहंदी पारी कोपार लिंगो और कलीकंकाली माता के दर्शन के लिए आते हैं। लगभग तीन लाख से अधिक श्रद्धालु अपनी आस्था और मनोकामनाएँ लेकर यहाँ पहुँचते हैं। ऐसी मान्यता है कि गोंडी धर्म की स्थापना पारीकोपार लिंगो ने लगभग 5000 वर्ष पहले की थी और इस स्थल से ही उन्होंने धर्म का प्रचार शुरू किया था। इसी कारण यह गुफा गोंड समाज के लिए अत्यंत पवित्र मानी जाती है और इसे ‘पाहंदी पारी कोपार लिंगो कचारगढ़ गुफा’ कहा जाता है। यह गुफा सालेकसा क्षेत्र में 518 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसकी ऊंचाई लगभग 94 मीटर है और 25 मीटर का प्राकृतिक दरवाजा है, जो सौंदर्य से परिपूर्ण है। कहा जाता है कि यहीं पर पारीकोपार लिंगो ने निवास किया था और अपने 12 अनुयायियों और 750 गोंड समाज के लोगों को धर्म की दीक्षा दी थी। गोंड समाज की धार्मिक आस्था कचारगढ़, जिसे गोंडी धर्म स्थल माना जाता है, भारत के मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह गोंड समाज की धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का केंद्र है और उनके प्राचीन परंपराओं और विश्वासों का प्रतीक है। यहाँ हर साल गोंड समाज के लोग बड़ी संख्या में एकत्रित होते हैं और अपने ईष्ट देवता लिंगो पेन की पूजा करते हैं, जिन्हें गोंड समाज का संरक्षक माना जाता है। धार्मिक मान्यताएँ और रीति-रिवाज गोंड समाज के लोगों की मान्यताओं के अनुसार, कचारगढ़ के पहाड़ और गुफाएं पवित्र मानी जाती हैं। यहाँ लिंगो पेन की पूजा मुख्य रूप से की जाती है, और माना जाता है कि यहीं पर उन्होंने ध्यान और तप किया था। यहाँ आने वाले श्रद्धालु फूल, धूप, और पूजन सामग्री लेकर लिंगो पेन की प्रतिमा के सामने श्रद्धा से पूजा करते हैं। धार्मिक आयोजन और उत्सव कचारगढ़ में हर वर्ष जनवरी में कचारगढ़ मेला आयोजित होता है, जो गोंड समाज का प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है। इस मेले में देशभर से गोंड समाज के लोग एकत्रित होते हैं और अपने पारंपरिक नृत्य, गीत, और सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। यह मेला गोंड समाज की एकता और उनके सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यटन कचारगढ़ का स्थल प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है। चारों ओर हरियाली, पहाड़, और प्राकृतिक गुफाएँ इसे एक अद्वितीय पर्यटन स्थल बनाते हैं। यहाँ आने वाले पर्यटक इस स्थल की सुंदरता और शांति का अनुभव करते हैं। यहाँ की प्राकृतिक संरचनाएँ और गुफाएँ इतिहास और प्रकृति के तालमेल का प्रतीक हैं। जंगलों में ट्रेकिंग, पिकनिक और फोटोग्राफी का आनंद लेने के लिए यह जगह खास है।
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भारत में पर्यटन के लिए प्रसिद्ध कई गुफाओं जैसे महाराष्ट्र की अजंता-एलोरा और विशाखापट्टनम की बोरा गुफाओं की तुलना में, एक और महत्वपूर्ण गुफा के बारे में कम ही लोग जानते हैं—कचारगढ़ गुफा। यह गुफा खास तौर पर गोंड समुदाय के लिए आस्था का केंद्र है और साल में एक बार यहाँ पर आदिवासी गतिविधियाँ अपनी चरम पर होती हैं। ऐसी मान्यता है कि सैकड़ों साल पहले, गोंड समाज के पहले गुरु पाहंदी पारी कोपार लिंगो ने इस गुफा की खोज की थी। गोंड समाज की आस्थाओं के अनुसार, हर क्षेत्र—चाहे वो गाँव हो या शहर, जल-जंगल, पहाड़-पर्वत या कृषि औजार—इन सभी में उनके देवता निवास करते हैं। कहा जाता है कि गोंडवाना साम्राज्य का विस्तार वर्तमान के महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, और छत्तीसगढ़ तक फैला था। गोंडवाना साम्राज्य आज भी इन राज्यों में गोंड समाज की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक छवि के रूप में देखा जा सकता है। कचारगढ़ की गुफाओं में भी इस साम्राज्य के अतीत की झलक मिलती है। ये गुफाएं महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ की सीमा पर सालेकसा तहसील में स्थित हैं और हरे-भरे पहाड़ों और प्राकृतिक सुंदरता के बीच में बसे हैं। #Kachargarhmela #Kachargarh #gondi #Gondwana #gondwana_video मेला: तीन से सात फरवरी तक आयोजन कचारगढ़ गोंड समाज का उत्पत्ति स्थल माना जाता है और इसे एशिया की सबसे विशाल प्राकृतिक गुफाओं में से एक माना जाता है। महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ की सीमा पर सालेकसा तहसील में स्थित यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित माना जाता है। यहाँ हर साल पाँच दिनों के लिए गोंड समाज के लोग अपने देवी-देवताओं की सेवा और पूजा के लिए एकत्रित होते हैं। इस बार का मेला तीन से सात फरवरी तक आयोजित किया गया, जिसमें ‘महागोगोना कोयापूनेम महापूजा’ भी होती है, जिसका आयोजन कचारगढ़ ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। लाखों आदिवासियों की आस्था का केंद्र इस मेले में देश के लगभग 16 राज्यों से गोंड आदिवासी अपने पूर्वजों और गोंडी धर्म के संस्थापक पाहंदी पारी कोपार लिंगो और कलीकंकाली माता के दर्शन के लिए आते हैं। लगभग तीन लाख से अधिक श्रद्धालु अपनी आस्था और मनोकामनाएँ लेकर यहाँ पहुँचते हैं। ऐसी मान्यता है कि गोंडी धर्म की स्थापना पारीकोपार लिंगो ने लगभग 5000 वर्ष पहले की थी और इस स्थल से ही उन्होंने धर्म का प्रचार शुरू किया था। इसी कारण यह गुफा गोंड समाज के लिए अत्यंत पवित्र मानी जाती है और इसे ‘पाहंदी पारी कोपार लिंगो कचारगढ़ गुफा’ कहा जाता है। यह गुफा सालेकसा क्षेत्र में 518 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसकी ऊंचाई लगभग 94 मीटर है और 25 मीटर का प्राकृतिक दरवाजा है, जो सौंदर्य से परिपूर्ण है। कहा जाता है कि यहीं पर पारीकोपार लिंगो ने निवास किया था और अपने 12 अनुयायियों और 750 गोंड समाज के लोगों को धर्म की दीक्षा दी थी। गोंड समाज की धार्मिक आस्था कचारगढ़, जिसे गोंडी धर्म स्थल माना जाता है, भारत के मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह गोंड समाज की धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का केंद्र है और उनके प्राचीन परंपराओं और विश्वासों का प्रतीक है। यहाँ हर साल गोंड समाज के लोग बड़ी संख्या में एकत्रित होते हैं और अपने ईष्ट देवता लिंगो पेन की पूजा करते हैं, जिन्हें गोंड समाज का संरक्षक माना जाता है। धार्मिक मान्यताएँ और रीति-रिवाज गोंड समाज के लोगों की मान्यताओं के अनुसार, कचारगढ़ के पहाड़ और गुफाएं पवित्र मानी जाती हैं। यहाँ लिंगो पेन की पूजा मुख्य रूप से की जाती है, और माना जाता है कि यहीं पर उन्होंने ध्यान और तप किया था। यहाँ आने वाले श्रद्धालु फूल, धूप, और पूजन सामग्री लेकर लिंगो पेन की प्रतिमा के सामने श्रद्धा से पूजा करते हैं। धार्मिक आयोजन और उत्सव कचारगढ़ में हर वर्ष जनवरी में कचारगढ़ मेला आयोजित होता है, जो गोंड समाज का प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है। इस मेले में देशभर से गोंड समाज के लोग एकत्रित होते हैं और अपने पारंपरिक नृत्य, गीत, और सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। यह मेला गोंड समाज की एकता और उनके सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यटन कचारगढ़ का स्थल प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है। चारों ओर हरियाली, पहाड़, और प्राकृतिक गुफाएँ इसे एक अद्वितीय पर्यटन स्थल बनाते हैं। यहाँ आने वाले पर्यटक इस स्थल की सुंदरता और शांति का अनुभव करते हैं। यहाँ की प्राकृतिक संरचनाएँ और गुफाएँ इतिहास और प्रकृति के तालमेल का प्रतीक हैं। जंगलों में ट्रेकिंग, पिकनिक और फोटोग्राफी का आनंद लेने के लिए यह जगह खास है।
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